मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों का प्रचार जोरों पर है. हालांकि अभी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन वोटर को लुभाने के लिए हर कोई तरह-तरह की घोषणाएं और दावे कर रहा है. बीजेपी जहां सत्ता बचाने की जुगत में लगी है तो कांग्रेस फिर से 2018 वाला प्रदर्शन करते हुए बहुमत के करीब पहुंचना चाह रही है.
वोट बैंक के लिए कोई नेता लुभावनी योजनाएं व फ्री की रेवड़ी बांट रहा है तो कोई जाति कार्ड व महिला कार्ड खेल रहा है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर मध्य प्रदेश में रेवड़ी बिकेगी या जाति कार्ड चलेगा. यहां हिंदुत्व की जड़ें कितनी गहरी हैं? आइए जानते हैं पूरा सियासी खेल.
फ्री योजनाओं का कितना असर?
चुनाव नजदीक आने पर बीजेपी सरकार ने वोटरों को लुभाने के लिए एक बड़ी घोषणा की है. इसके तहत शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में 35% का आरक्षण देने की एलान किया है. सरकार ने कहा है कि सीधी भर्ती में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण मिलेगा. फिलहाल प्रदेश में महिला आरक्षण 33 फीसदी ही है. इस फैसले को महिला वोटरों को आकर्षित करने से जोड़कर देखा जा रहा है.
वहीं फ्री रेवड़ी की बात करें तो शिवराज सरकार ने फ्री स्कूटी योजना, लाडली बहना योजना, गैस सिलेंडर रीफिलिंग योजना, सीएम सीखो कमाओ योजना, कर्ज माफी योजना व कई अन्य ऐसी ही योजनाएं शुरू कर रखी हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि फ्री रेवड़ी को इतना बड़ा फैक्टर नहीं माना जा सकता. क्योंकि 2018 चुनाव में भी इनमें से कई स्कीम लागू थीं, लेकिन जनता ने कांग्रेस को बहुमत के करीब भेजा था.
जाति फैक्टर कितना हावी?
देश के दूसरे राज्यों की तरह ही मध्य प्रदेश में भी जाति फैक्टर अहम है. लोकनीति के सर्वे के मुताबिक देश में आज भी 55% मतदाता कैंडिडेट्स की जाति देखकर मतदान करते हैं. मध्य प्रदेश में यह प्रतिशत 65 प्रतिशत है. यही वजह है कि राजनीतिक दल भी जाति देखकर उम्मीदवार उतारते हैं. मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग की आबादी 23 प्रतिशत है.
मालवा-निमाड़ और महाकौशल रीजन में 37 सीटों पर यह निर्णायक भूमिका निभाते हैं. विंध्य की बात करें तो यहां 14 पर्सेंट ब्राह्मण वोटर्स हैं. सबसे ज्यादा 29 प्रतिशत सवर्ण मतदाता इसी इलाके में आते हैं. बात मुस्लिम वोटर की करें तो मध्य प्रदेश के 4.94 करोड़ वोटर्स में 10.12 प्रतिशत (50 लाख) मुस्लिम वोटर हैं, जो पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ और भोपाल रीज की 40 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.
यह जाति फैक्टर का दबदबा ही है कि बीजेपी ने इस बार इसी को ध्यान में रखते हुए अधिकतर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. जिन सीटों पर उम्मीदवारों का चयन जाति के आधार पर हुआ है वे सीटें सबलगढ़, सुमावली, गोहद, पिछोर, चाचौड़ा, चंदेरी, बंडा, महाराजपुर, पथरिया, गुन्नौर (पन्ना), चित्रकुट, छतरपुर, पुष्पराजगढ़, बड़वारा, बरगी, जबलपुर, पेटलावाद, कुक्षी, धरमपुरी, राऊ, घटिया व तराना हैं.
हिंदुत्व की जड़ें कितनी गहरीं?
मध्य प्रदेश में जाति के बाद जो फैक्टर सबसे बड़ा है वो है हिंदुत्व. यहां हिंदुत्व की जड़ें काफी गहरी हैं. यही वजह है कि कांग्रेस को भी यहां सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे चलना पड़ता है. उसके नेता हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, उनमें शामिल होते हैं. यहां हिंदुत्व आज से नहीं, बल्कि काफी पुराना है. इसे पूरे भारत में हिंदुत्व की 'सबसे पुरानी' प्रयोगशाला भी कहते हैं.
इसके पीछे खास वजह है. दरअसल, नागपुर से निकटता की वजह से मध्य प्रदेश में आरएसएस की पैठ आज़ादी से पहले से ही थी. आरएसएस व अन्य हिंदू संगठनों का प्रभाव पहले मालवा और फिर धीरे-धीरे भिंड, चंबल और प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी गया. तभी से इसे लेकर कहा जाने लगा कि मध्य प्रदेश हिंदुत्व की 'सबसे पुरानी' प्रयोगशाला है. यहां पर हिंदू महासभा, रामराज्य परिषद और भारतीय जनसंघ जैसे तीन हिन्दुत्ववादी राजनीतिक’ संगठन सक्रिय थे.
मौजूदा समय की बात करें तो अभी मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब 7 प्रतिशत है. इसके अलावा अन्य दूसरे धर्म के वोटरों को भी मिला दें तो भी हिंदू आबादी करीब 88 पर्सेंट होने का अनुमान है. ऐसे में यहां हिंदुत्व फैक्टर भी काम करता है.
Post a Comment